तन्हायिओं में बैठे बैठे यूं ही ख़्याल आ गया,
मेरे आगे मेरी जिन्दगी का फिर वही सवाल आ गया।।
जिन्दगी की सारी जग्दोजहत किसके लिए है?
दिन दिन भर की वो भारी कसरत किसके लिए है?
एक ना एक दिन तो फना हो ही जाना है।
इस भीड़ भाड़ से निकलकर तनहा हो ही जाना है।।
पर इस बारे में सोच कर, क्या अभी से जीना छोड़ दें?
जितने रिश्ते नाते हैं, क्या उन्हें मृत्यु से पहले ही तोड़ दें?
इसका उत्तर स्वयम कृष्ण ने गीता में दिया है।
मनुष्य की इस दुविधा का भी हल किया है।।
मृत्यु सत्य है, अटल है, कभी ना कभी तो आनी है।
परंतु उससे पहले जीने के लिए यह ज़िन्दगानी है।।
जिन्दगी में कर्म करो, फल की चिन्ता छोड़ दो।
साथ ही अपना ध्यान इश्वर की ओर मोड़ दो।।
इस संसार में ऐसे रहो, जैसे कीचड में कमल का फूल रहे।
मन से तुम्हारे राग, द्वेष, कलेश, कोसों दूर रहें॥
स्वयम खुश रहो और चहुँ ओर खुशियाँ बाटों।
संसार के मुख से गरीबी और हिंसा के पेड़ काटो॥
ऐसा कुछ करो जिससे सबके जीवन में उजाला हो।
इस धरा का रंग फिर से हरियाला हो॥
हाँ यह सच है की एक ना एक दिन मृत्यु आनी है।
परंतु उससे पहले जीने के लिए एक सुन्दर ज़िन्दगानी है॥
Thursday, July 5, 2007
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